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अव॑सृष्टा॒ परा॑ पत॒ शर॑व्ये॒ ब्रह्म॑सꣳशिते। गच्छा॒मित्रा॒न् प्र प॑द्यस्व॒ मामीषां॒ कञ्च॒नोच्छि॑षः ॥४५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑सृ॒ष्टेत्यव॑ऽसृष्टा। परा॑। प॒त॒। शर॑व्ये। ब्रह्म॑सꣳशित॒ इति॒ ब्रह्म॑ऽसꣳशिते। गच्छ॑। अ॒मित्रा॑न्। प्र। प॒द्य॒स्व॒। मा। अ॒मीषा॑म्। कम्। च॒न। उत्। शि॒षः॒ ॥४५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:45


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शरव्ये) बाणविद्या में कुशल (ब्रह्मसंशिते) वेदवेत्ता विद्वान् से प्रशंसा और शिक्षा पाये हुए सेनाधिपति की स्त्री ! तू (अवसृष्टा) प्रेरणा को प्राप्त हुई (परा, पत) दूर जा (अमित्रान्) शत्रुओं को (गच्छ) प्राप्त हो और उनके मारने से विजय को (प्र, पद्यस्व) प्राप्त हो, (अमीषाम्) उन दूर देश में ठहरे हुए शत्रुओं में से मारने के विना (कम्, चन) किसी को (मा) (उच्छिषः) मत छोड़ ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - सभापति आदि को चाहिये कि जैसे युद्धविद्या से पुरुषों को शिक्षा करें, वैसे स्त्रियों को भी शिक्षा करें। जैसे वीरपुरुष युद्ध करें, वैसे स्त्री भी करे। जो युद्ध में मारे जावें, उनसे शेष अर्थात् बचे हुए कातरों को निरन्तर कारागार में स्थापन करें ॥४५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अवसृष्टा) प्रेरिता (परा) (पत) याहि (शरव्ये) शरेषु बाणेषु साध्वी स्त्री तत्सम्बुद्धौ (ब्रह्मसंशिते) ब्रह्मभिश्चतुर्वेदविद्भिः प्रशंसिते शिक्षया सम्यक् तीक्ष्णीकृते (गच्छ) (अमित्रान्) शत्रून् (प्र) (पद्यस्व) प्राप्नुहि (मा) निषेधे (अमीषाम्) दूरस्थानां विरोधिनाम् (कम्) (चन) कञ्चिदपि (उत्) (शिषः) उदूर्ध्वं शिष्टं त्यजेत् ॥४५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शरव्ये ब्रह्मसंशिते सेनानीपत्नि ! त्वमवसृष्टा सती परापतामित्रान् गच्छ, तेषां हनने विजयं प्रपद्यस्वामीषां शत्रूणां मध्ये कञ्चन मोच्छिषो हननेन विना कञ्चिदपि मा त्यजेः ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - सभापत्यादिभिः यथा युद्धविद्यया पुरुषाः शिक्षणीयास्तथा स्त्रियश्च, यथा वीरपुरुषा युद्धं कुर्युस्तथा स्त्रियोऽपि कुर्वन्ति। ये शत्रवो युद्धे हताः स्युस्तदवशिष्टाश्च शाश्वते बन्धने कारागृहे स्थापनीयाः ॥४५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - युद्धविद्येचे शिक्षण जसे पुरुषांना दिले जाते तसे राजाने स्त्रियांनाही द्यावे. जसे वीर पुरुष युद्ध करतात, तसेच स्त्रियांनीही करावे. युद्धात मृत झालेल्यांना सोडून (शत्रूपक्षाच्या) उरलेल्या भयभीत लोकांना सतत कारागृहात ठेवावे.